भांवरकोल (गाजीपुर ) पितृ पक्ष 10 सितंबर (शनिवार) से शुरू होकर 25 सितंबर (रविवार) तक रहेंगे। भाद्रपद की पूर्णिमा और अश्विन मास की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को पितृ पक्ष कहते हैं। क्षेत्र के कनुवान गांव निवासी ब्राह्मण समाज के महासचिव पंडित ब्रह्मानंद पांडेय ने बताया कि ब्रह्मपुराण की मानें तो मनुष्य को सर्वप्रथम अपने पूर्वजों की पूजा करनी चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इससे देवता प्रसन्न होते हैं। इसी वजह से भारतीय समाज में बड़ों का सम्मान और मरणोपरांत पूजा की जाती है। जिसे हम श्राद्ध कहते हैं। वैसे तो श्राद्ध मृत्यु तिथि पर किया जाता है लेकिन यदि तिथि याद नहीं तो अश्विन अमावस्या की पूजा की जा सकती है जिसे सर्व प्रभु अमावस्या भी कहा जाता है। श्राद्ध के दिन हम तर्पण करके अपने पूर्वजों का स्मरण करते हैं और ब्राह्मणों या जरूरतमंद लोगों को भोजन और दक्षिणा अर्पित करते हैं। पद्मपुराण एवं अन्य कई स्मृति ग्रंथों में कहा गया है कि जो पितृपक्ष में अपने पितरों के निमित्त अपने सामर्थ्य के अनुसार पूरी विधि से श्राद्ध करता है, उसकी इच्छाएं पूरी होती हैं। साथ ही हर तरह की रुकावटें दूर हो जाती हैं। घर पर श्राद्ध करने का तरीका श्राद्ध तिथि पर प्रातः उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर पूरे घर की साफ सफाई करें। इसके बाद घर को गंगाजल से स्वच्छ करें। पूजा के लिए तांबे के बर्तन में काले तिल, गाय का कच्चा दूध, गंगाजल और पानी का मिश्रण बनाएं। जल के इस मिश्रण को अंजुली बनाकर सीधे हाथ के अंगूठे से उसी बर्तन में गिराएं। इस तरह 11 बार करते हुए पितरों का ध्यान करें।
श्राद्ध में सफेद फूलों का उपयोग करना चाहिए। श्राद्ध के लिए आवश्यक सामग्री में गंगाजल, शहद, दूध, सफेद वस्त्र, तिल मुख्य है।श्राद्ध हमेशा अभिजित मुहूर्त में करें। श्राद्ध के दौरान पितरों के लिए किए गए हवन की अग्नि में गाय के दूध से बनी खीर अर्पित करें। ब्राह्मण भोज से पूर्व गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटी यानी पंचबलि के लिए भोजन पत्ते पर निकालें। दक्षिण दिशा में मुंह रखकर कुश, जौ, तिल, चावल और जल लेकर संकल्प करें। इसके बाद एक या तीन ब्राह्मण को भोजन कराएं।
महिलाएं शुद्ध होकर पितरों के लिए भोजन बनाएं। श्राद्ध के दिन ब्राह्मण को निमंत्रण दें और उन्हें श्रद्धापूर्वक भोजन कराएं। भोजन कराने से पहले ब्राह्मण देव के चरण धोएं। चरण धोते समय इस बात का ध्यान रखें कि पत्नी को दाहिनी तरफ होना चाहिए।
भोजन के उपरांत अपने सामर्थ्य अनुसार दक्षिणा और दान करें। दान सामग्री के अंतर्गत गाय, भूमि, तिल, स्वर्ण, घी, वस्त्र, अनाज, गुड़, चांदी तथा नमक आदि दान कर सकते हैं।
दान करने के बाद निमंत्रित ब्राह्मण की चार बार प्रदक्षिणा कर आशीर्वाद लें। ब्राह्मण को चाहिए कि स्वस्तिवाचन तथा वैदिक पाठ करें तथा गृहस्थ एवं पितर के प्रति शुभकामनाएं व्यक्त करें।