भांवरकोल ( गाजीपुर )क्षेत्र के ब्लाक मुख्यालय स्थित मां काली मंदिर पर नौ दिवसीय सीता राम संकीर्तन अनुष्ठान का समापन कन्या एवं बाल भोज के साथ सम्पन्न हुआ। इस मौके पर परमहंस मौनी बाबा ने अनुष्ठान के महत्व पर लिखित रूप से बताया कि महानवमी के दिन कन्याओं की पूजा की जाती है। देवी मां को प्रसन्न करने के लिए छोटी-छोटी कन्याओं की पूजा की जाती है। और उन्हें उपहार दिया जाता है। ये परंपरा काफी समय से चली आ रही है। नवरात्रि की कलश स्थापना और पूजा के साथ ही कन्याओं को भोजन जरूर कराया जाता है। कन्याओं का पूजन करने के साथ उन्हें लाल वस्त्र उपहार स्वरूप देना चाहिए। माता रानी को लाल वस्त्र बेहद प्रिय है। अगर आप लाल वस्त्र देने में असमर्थ हैं तो लाल रंग की चुनरी ही हर कंचक को ओढ़ाएं। इससे भी देवी मां का आशीर्वाद मिलेगा।कन्याओं को भोजन कराने में एक फल जरूर दें। मान्यता है कि फल उपहार में देने से आपके अच्छे कर्मों का फल कई गुना वापस होकर मिलता है। केला और नारियल को सबसे शुभ फल माना गया है। केला विष्णु भगवान का प्रिय है तो वहीं नारियल देवी मां को पसंद है। इसलिए इन दोनों को ही दान में देना चाहिए। वहीं कन्याओं को उपहार में भी दें।
प्रसाद स्वरूप कन्याओं को किसी एक तरह का मिष्ठान्न जरूर खिलाना चाहिए। आप चाहें को भोज में कन्याओं के लिए सूजी का हलवा, आटे का हलवा माता रानी को भोग लगाने के बाद दे सकती हैं। इससे गुरू ग्रह मजबूत होता है। नवरात्रि में कन्या भोज के बाद सारी कन्याओं को उपहार में श्रृंगार की सामग्री देनी चाहिए। सबसे पहले श्रृंगार की सामग्री को देवी मां को चढ़ा देना चाहिए। उसके बाद उन श्रृंगार सामग्री को कन्याओं में बांट देना चाहिए। मान्यता है कि कन्याओं की ग्रहण की गई श्रृंगार सामग्री सीधे देवी मां स्वीकार कर लेती हैं।
परंपरा अनुसार घऱ से जब बेटिया विदा होती हैं तो उन्हें चावल उपहार में दिया जाता है। उसी तरह से कन्याओं को भोज कराने के बाद विदाई में चावल देना चाहिए। साथ में चावल के जीरा भी देना चाहिए।प्रातः काल स्नान करके मां की उपासना करें और प्रसाद में खीर ,पूरी ,हलवा आदि बनावे और मां को भोग लगाएं फिर कन्याओं को आमंत्रित कर उनके पैर धोएं और साफ आसन पर बिठाए उन्हें टीका लगाकर आरती उतारें।