भांवरकोल (गाजीपुर) संसार में  सबसे बड़ा दान कन्यादान होता है। इससे बड़ा दान संसार में कोई दान नहीं है। शास्त्रों में कन्यादान को परम सौभाग्य माना गया है। जिन माता-पिता को कन्यादान का सौभाग्य प्राप्त होता है उनके लिए इससे बड़ा पुण्य इस धरती पर कुछ भी नहीं है। यह दान उनके लिए मोक्ष की प्राप्ति मरणोपरांत स्वर्ग का रास्ता भी खोल देता है। उक्त बातें क्षेत्र शेरपुर कला गांव के व्यामशाला प्रांगण में आयोजित श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ में श्रीमद् भागवत कथा के सातवें दिन अयोध्या धाम से पधारी भागवत कथा वाचिका साध्वी सीता सहचरी ने अपने प्रवचन के दौरान कही।उन्होंने कहा कि हिदू धर्म में कन्यादान का अर्थ होता है कन्या का दान, अर्थात पिता अपनी पुत्री का हाथ वर के हाथ में सौंपता है। इसके बाद से कन्या की सारी जिम्मेदारियां वर को निभानी होती हैं। यह एक भावुक संस्कार है। उन्होंने बताया कि वेदों और पुराणों के अनुसार विवाह में वर को भगवान विष्णु का स्वरूप माना जाता है। विष्णु रूपी वर कन्या के पिता की हर बात मानकर उन्हें यह आश्वासन देता है कि वह उनकी पुत्री को खुश रखेगा और उसके मान मर्यादा पर कभी आंच नहीं आने देगा। शास्त्रों में वर्णन आता है कि कन्यादान करने वाले माता-पिता और परिवार को भी सौभाग्य की प्राप्ति होती है। उन्होंने श्रीमद् देवी भागवत कथा की महिमा का वर्णन करते हुए प्रारंभ में भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह का वर्णन किया। खासकर शिव बारात में शामिल भूत पिशाच, देवता और गणों विशेषताओं का बखूबी वर्णन किया। अंत में व्यासपीठ पर विराजमान श्रीमद् देवी भागवत पुराण का विधिवत पूजा पाठ और आरती कर भागवत कथा का समापन किया गया। इस अवसर पर यज्ञाधीश कन्हैया दास महाराज, संजय जी महाराज, आचार्य रोहित सांस्कृत्यायन , मुख्य यजमान ओम प्रकाश राय ,चौकी इंचार्ज मनोज मिश्रा, पवन यादव ,सीमा राय ,आनंद राय पहलवान आदि लोग मौजूद रहे