सरस काव्य गोष्ठी का हुआ आयोजन
गाजीपुर।’अखिल भारतीय साहित्य परिषद’ के तत्वावधान में, गाजीपुर इकाई-प्रमुख कवि हरिशंकर पाण्डेय के संयोजकत्व में खालिसपुर में एक सरस काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया।अध्यक्षता महाकवि कामेश्वर द्विवेदी एवं संचालन सुपरिचित नवगीतकार डाॅ.अक्षय पाण्डेय ने किया। मंचीय औपचारिकताओं के पश्चात् आगंतुक कविगण एवं अतिथियों का हरिशंकर पाण्डेय ने वाचिक स्वागत किया।सर्वप्रथम नगर के महान साहित्यकार स्मृतिशेष डॉ.जितेन्द्रनाथ पाठक के प्रति समस्त कविगण एवं प्रबुद्ध आगंतुकों ने उनकी स्मृति में कुछ पल का मौन धारण कर अपनी संवेदना व्यक्त करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की। गोष्ठी का शुभारंभ महाकवि कामेश्वर द्विवेदी की वाणी-वंदना से हुआ। काव्यपाठ के क्रम में युवा ग़ज़ल-गो गोपाल गौरव ने अपनी ग़ज़ल “उनसे जब से मेरी दोस्ती हो गई/ज़िन्दगी में मेरी रौशनी हो गई/ख़ुश मुझे देखकर वे परेशान थे/है यही बात जो दुश्मनी हो गई” प्रस्तुत कर अतीव प्रशंसित रहे। लोकरस में पगे गीतों से रससिक्त करने वाले भोजपुरी के गीतकार हरिशंकर पाण्डेय ने अपना गीत “कहाॅं गइल दादी अउरी नानी के कहानी/एगो रहलें राजा अउर एगो रहली रानी/नइकी पतोहिया माथे ॲंचरो ना राखे/मरल जाता आज सबके ॲंखियन क पानी” सुनाकर ख़ूब वाहवाही लूटी। युवा कवि डॉ.शशांकशेखर पाण्डेय ने गुरु पर केन्द्रित अपना भावपूर्ण गीत “गुरु दया बनाए रखना/मुझको शरणों में रखना” प्रस्तुत कर ख़ूब तालियाॅं अर्जित की। इसी क्रम में ‘साहित्य चेतना समाज’ के संस्थापक, वरिष्ठ व्यंग्य-कवि अमरनाथ तिवारी ‘अमर’ ने अपनी व्यंग्य-कविता “बन कर रहना अपने पति के चरणों की दासी/घर को बनाना स्वर्ग और घर वालों को स्वर्गवासी” सुनाकर ख़ूब वाहवाही अर्जित की। युवा नवगीतकार डाॅ.अक्षय पाण्डेय ने आज घर-समाज में पिता के प्रति उपेक्षा-भाव एवं दयनीय स्थिति को दर्शाता अपना ‘अप्रासंगिक होने लगे पिता’ शीर्षक नवगीत “ऑंख बचाकर आना-जाना/रिश्तों का कतराना/बूढ़ी ऑंखें देख रहीं हैं/ बदला हुआ ज़माना/घर में होकर भी घर में ही/खोने लगे पिता/धीरे-धीरे अप्रासंगिक होने लगे पिता।” सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करते हुए अतीव प्रशंसा अर्जित की। नगर के वरिष्ठ ग़ज़ल-गो नागेश मिश्र ने “हिन्दी में पैदाइश है/उर्दू से इश्क हुआ/हर लफ़्ज़ शायद इसीलिए/बाकायदा निकले” इस शेर पर खूब वाहवाही लूटी। नगर के वरिष्ठ कवि, वीर रसावतार दिनेशचन्द्र शर्मा ने अपनी कविता “आग नफरत की तुम तो जलाते रहे/लोग आते रहे और जाते रहे” सुनाकर श्रोताओं में ओजत्व का संचार कर ख़ूब वाहवाही बटोरी।अन्त में अध्यक्षीय काव्यपाठ करते हुए महाकाव्यकार कामेश्वर द्विवेदी ने नैतिक मूल्यों के संरक्षण की ओर ध्यानाकर्षण करते हुए अपनी छान्दस कविता “करती है पश्चिमी बयार संस्कार क्षार/उसका प्रवाह आगे बढ़े नहीं रोक दें/टूटते हैं आपस के मधुर सम्बन्ध यदि/हृदय से हृदय का तार दृढ़ जोड़ दें” प्रस्तुत कर ख़ूब प्रशंसा अर्जित की। इस काव्यायोजन में उपस्थित रसभावक, प्रबुद्ध श्रोतागण काव्य-पाठ से आनन्द-विभोर होकर बहुत देर तक अपनी करतल ध्वनि से पूरे परिसर को गुंजायमान करते रहे।इस सरस काव्यगोष्ठी में श्रोता के रूप में प्रमुख रूप से भगवान प्रसाद गुप्ता,नन्दकिशोर सिंह, रविशंकर पाण्डेय, कृष्णानन्द पाण्डेय, नन्दलाल सिंह,सन्तोष कुमार पाण्डेय, विजय कुमार पाण्डेय, बृजेश यादव, कमलेश यादव आदि उपस्थित रहे। अन्त में अध्यक्षीय उद्बोधनोपरान्त हरिशंकर पाण्डेय ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया।