भोजपुरी के विस्तार के लिए करने होंगे सार्थक प्रयास : शिवनंदन
गाजीपुर : लोक साहित्य तथा संस्कृति के आयाम भारतीय परिप्रेक्ष्य विषय पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी दूसरे दिन भी जारी रही। प्रथम सत्र में प्रमुख वक्ता के रूप में प्रोफेसर आनंद सिंह ने कहा कि लोग को समझने के लिए सामंती प्रवृत्ति से छुटकारा पाना होगा ताकि नए सिरे से जनतांत्रिक और समावेशी प्रक्रियाओं का निर्माण कर संस्थाएं गढी जा सके। नेपाल से आए शिवनंदन जयसवाल ने भोजपुरी के विस्तार हेतु सार्थक प्रयास किए जाने पर बल दिया। गुजरात से चौधरी विमल कुमार बाबू सिंह भाई ने दक्षिण गुजरात की बासवा जनजाति के लोकगीतों पर अपने शोध पत्र का वाचन किया। केंद्रीय विश्वविद्यालय रांची के शोध छात्र राकेश कुमार ने जनजातियों परंपराओं के विश्लेषण से संबंधित शोध पत्र प्रस्तुत किया। नई दिल्ली से आई शोध छात्रा विजयलक्ष्मी ने एड्स जागरूकता हेतु संचार माध्यमों की उपादेयता पर अपना शोध पत्र पढ़ा। जनसत्ता के संपादक सूर्यनाथ सिंह ने लोक को बाजार द्वारा हडपे जाने की प्रक्रिया की विवेचना की। सत्र की अध्यक्षता कर रहे ज्योतिष जोशी जीने संस्कृति के विचार और लोक पक्ष पर बात की। इस सत्र में वंशिका सिंह, सुजीत कुमार सिंह, अंजली सिंह इत्यादि ने भी शोध पत्र का वाचन किया। इस तकनीकी सत्र का संचालन डॉ संतन कुमार राम ने किया।
दूसरे सत्र के मुख्य वक्ता लीबिया के प्रोफेसर अनिल प्रसाद रहे। इन्होंने अपने कांतापुरा उपन्यास के माध्यम से कहानी कहने की लोक परंपरा की नई शैली को उद्घाटित किया। आपकी अनुसार बच्चों को लोक कथाओं को बताने से उनकी निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है तथा अपने प्रकृति एवं आसपास के प्रति जिज्ञासा एवं सूझ का विकास होता है। डॉ संतोष कुमार सिंह ने हिंदी सिनेमा के गीतों में लोक स्वर की बात करते हुए हिंदी सिनेमा के भोजपुरी गीतों का मधुर गायन कर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। डॉ अतुल यादव ने समाज में लोक साहित्य के स्थानांतरण की प्रक्रिया पर चर्चा की। जबकि डॉ विवेकानंद पांडे ने भोजपुरी सिनेमा में लोकगीतों एवं संगीत की परंपरा पर प्रकाश डाला जिससे हमारी लोक भाषा एवं लोक संस्कृति समृद्ध होती है। सत्र की अध्यक्षता काशी हिंदू विश्वविद्यालय की अंग्रेजी विभाग के प्रोफेसर संजय कुमार ने किया । आपने मौखिक एवं लिखित साहित्य के अंतर को समझाते हुए बताया कि हर वाचिक साहित्य लोग नहीं है तथा हर लिखित शास्त्र नहीं है। आपने भोजपुरी लोक कहानियां का उदाहरण देते हुए देशज ज्ञान की समृद्ध विरासत की चर्चा की। अंतिम सत्र का संचालन डॉ शिव कुमार एवं आभार ज्ञापन डॉ प्रमोद कुमार श्रीवास्तव ने किया। इसी सत्र में डॉ विकास सिंह ने प्राचीन उपासना पद्धति के विकास, प्रो अनिता कुमारी ने लोक कथा साहित्य की प्राचीन परंपरा, डॉ संगीता मौर्य लोक एवं स्त्री, डॉ राजेश यादव ने लोक संस्कृति और व्यवहारवादी राजनीति पर अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए।सेमिनार के समापन सत्र की अध्यक्षता प्रोफेसर वशिष्ठ अनूप काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी ने किया तथा मुख्य वक्ता पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर की पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष डॉ अवध बिहारी सिंह रहे। सेमिनार का समापन वक्तव्य भोजपुरी साहित्यकार एवं कजरी पर बहुत चर्चित पुस्तक के लेखक श्री हीरालाल मिश्र ने दिया। इस सत्र का संचालन डॉ विकास सिंह ने एवं आभार ज्ञापन सेमिनार के संयोजक काजी फरीद आलम ने किया। सेमिनार के दूसरे दिन लोक साहित्य एवं संस्कृति पर अत्यंत सारगर्भित एवं गंभीर विमर्श हुआ। इसमें लगभग भारत के 20 प्रांतों से एवं कई देशों के विद्वानों ने अपना वक्तव्य दिया। सेमिनार के अंतिम सत्र के रूप में लोक कलाओं का प्रदर्शन हुआ। इसके अंतर्गत पवन बाबू, रोहित प्रधान, अविनाश पांडे एवं जनपद तथा आसपास के स्थानीय लोक कलाकारों ने अपने लोक गीत एवं नृत्य प्रस्तुत कर लोक कलाओं के संरक्षण एवं सतत प्रदर्शन की महत्ता को रेखांकित किया। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से प्राचार्य प्रोफेसर डॉ सविता भारद्वाज, डॉ जितेंद्र नाथ राय, प्रोफ़ेसर उमाशंकर प्रसाद, डॉ अमित यादव, डॉ शैलेंद्र कुमार यादव, डॉ बालेन्दु विक्रम, शेरखान, डॉ राकेश पांडे, डॉ सुशील कुमार तिवारी एवं दूर-दूर से आए शोधार्थी, प्राध्यापक गण एवं सुधि छात्राएं एवं लोक कलाकार एवं सम्मानित श्रोता गण उपस्थित रहे।