ग़ाज़ीपुरधर्म

आज फिर से दिवाली, राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा को लेकर राममय माहौल

भांवरकोल (गाजीपुर) प्रभु की कृपा भयऊ सब काजु…अर्थात जब प्रभु की कृपा होती है तो सारे काम हो जाते हैं। हिन्दू समाज के 500 वर्षों के तप के बाद आखिरकार सोमवार को प्रभु श्रीरामलला अपने नव्य-भव्य और दिव्य महल में विराजने जा रहे हैं।गांव-गांव में मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम का बखान किया जा रहा है। और मंदिरों पर रामायण पाठ और भजन कीर्तन किया जा रहा है।पूरे क्षेत्र में सुंदरकांड पाठ अष्ट जाम और हनुमान चालीसा का पाठ किया गया।भगवान श्रीराम के प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर सोमवार शाम को सभी घरों और मंदिरों पर दीपोत्सव कार्यक्रम के अलावा क्षेत्र के समस्त मंदिरों पर भव्य सजावट, प्रकाश व्यवस्था की गई थी। पूरे क्षेत्र का माहौल राममय हो गया था।क्षेत्र की सुंदरता को किस कदर निखारा गया है, किसी से छिपा नहीं है। एक-एक गलियां, एक-एक सड़कें, हर छोटे-बड़े मंदिर कोई भी जगह अछूती नहीं है, जिसकी सुंदरता में चार चांद न लगाए गए हों. लेकिन जरा सोचिए कि जब त्रेतायुग में सच में भगवान राम 14 वर्षों के वनवास के बाद लौटकर अयोध्या आए होंगे, तब अयोध्या को किस कदर सजाया गया होगा।जब इस कदर तकनीक नहीं थी कि रंग-बिरंगी रोशनी से किसी शहर को नहलाया जा सके, तब भरत के नेतृत्व में किस कदर अयोध्यावासियों ने अपने राम का स्वागत किया होगा। अब उस सुंदरता की तो महज कल्पना ही की जा सकती है। लेकिन वाल्मीकि रामायण में महर्षि वाल्मीकि और रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास ने उस वक्त की अयोध्या का जिन शब्दों में बखान किया है, उससे आप समझ सकते हैं कि त्रेतायुग में सुंदरता की परिभाषा क्या थी।राम के वन जाने के बाद राम की चरणपादुकाओं के साथ भरत अयोध्या के पास बसे नंदीग्राम में ही रहते थे. राम जब अयोध्या लौट रहे थे तो रास्ते में वो भारद्वाज मुनि के आश्रम में रुके थे और वहीं पर उन्होंने हनुमान से कहा कि वो अयोध्या जाकर भरत को ये बताएं कि राम अयोध्या आ रहे हैं।
तब हनुमान ने भरत को पूरी कहानी बताई और ये भी बताया कि भारद्वाज मुनि के आश्रम से राम अब अयोध्या आने वाले हैं. तब भरत ने शत्रुघ्न से अयोध्या को संवारने के लिए कहा. वाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड के 130वें सर्ग में महर्षि वाल्मीकि लिखते हैं –
विष्टीरनेकसाहस्त्राश्चोदयामास वीर्यवान्।
समीकुरुत निम्नानि विषमाणि समानि च।।
स्थलानि च निरस्यंतां नन्दिग्रामादित: परम्।
सिंचन्तु पृथिवीं कृत्स्नां हिमशीतेन वारिणा।।